खुद को ढूंढ़ते ढूँढते न जाने कब सब खो गया,
दुसरो को खुश रखने की कोशिशों में,
खुद की ही खुशी का पता भूल गया।
दुनिया की नजरों में उठने की कोशिशों ने,
खुद की ही नजरों से गिरा दिया।
लोगों की सोच को बदलने की राह में,
खुद की सोच पर ही सवाल उठाता गया।
हर मोड़ पर धोखा पाया है,
फिर भी आगे बढ़ते रहने का जज्बा कमाया है।
पर अब न जाने खुद को साबित करते करते ,
अपने वजूद पर ही सवाल उठाता हूँ।
अब तो खुद से ही नफरत होती है,
क्या लोगों को खुश रखने की कोशिशों की इतनी बड़ी सजा होती है…….. इतनी बड़ी सजा होती है।